रानीगंज : संथाल समुदाय के लोगों ने दिशम आदिवासी गांवता की शाखा “फाईट फार मदर टंग” के बैनर तले शुक्रवार को जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान संथालियों ने पारंपरिक धमसा, मादल, धनुष-तीर लेकर रानीगंज के पंजाबी मोड़ के ओवर ब्रिज से टीडीबी कॉलेज तक एक रैली निकाली। रैली में विभिन्न जिलों से आदिवासी संगठनों के कई नेता उपस्थित हुए। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, वे टीडीबी कॉलेज में अपनी स्थिति को लेकर प्रदर्शन करते रहेंगे।
उनका दावा है कि टीडीबी कॉलेज में शिक्षा के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा होने के बावजूद आदिवासियों को व्यवस्थित रूप से वंचित किया जा रहा है। यह समस्या प्रबंधन समिति के सही निर्णय न लेने के कारण उत्पन्न हुई है।
घटना के बाद इस विशाल विरोध मार्च को सही ढंग से संपन्न कराने के लिए भारी संख्या में पुलिस प्रशासन और पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारी भी मौजूद रहे। किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए लाठीधारी पुलिस, महिला पुलिस और यहां तक कि आंसू गैस के गोले भी तैयार रखे गए थे।
इस बीच, किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए रानीगंज के त्रिवेणी देवी वालोटिया कॉलेज परिसर में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। दोपहर करीब 12:30 बजे पंजाबी मोड़ से जुलूस शुरू हुआ और कॉलेज परिसर तक पहुंचा।
प्रदर्शनकारियों ने मातृभाषा में पढ़ाई की मांग करते हुए कॉलेज में संथाली भाषा शुरू करने और बंद पड़ी शिक्षा व्यवस्था को अविलंब सुचारू रूप से शुरू करने की मांग की। इस दिन कई युवा लड़के-लड़कियों ने इस विरोध मार्च में नारे लगाए और शिक्षा की व्यवस्था तत्काल शुरू करने की मांग की।संगठन के राज्य पर्यवेक्षक भुवन मांडी ने बताया कि 2017 से रानीगंज के टीडीबी कॉलेज में आदिवासी समाज के लोग संथाली भाषा और अलचीकी लिपि में पढ़ाई की मांग कर रहे हैं, लेकिन कुछ अज्ञात कारणों से उनकी मांग पूरी नहीं की जा रही है। इसलिए यह विरोध जुलूस निकाला गया। उन्होंने कहा कि आदिवासी होने के कारण उनकी मांगें नहीं मानी जा रही हैं, ताकि आदिवासी समाज के लोग पढ़-लिखकर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न हो सकें।राज्य के विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालयों में अलचीकी लिपि में पढ़ाई शुरू हो गई है, लेकिन रानीगंज में यह मांग अब तक नहीं मानी गई है। रानीगंज और आसपास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनको अपनी भाषा में पढ़ाई के लिए आसनसोल या पुरुलिया जाना पड़ता है। उनकी मांग है कि जब तक आदिवासी समाज की मांग पूरी नहीं होगी, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा।